
03 नवम्बर :- हिन्दू धर्म में दिवाली को महापर्व का दर्जा मिला है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये त्योहार पांच दिवसीय होता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से होती है. इसके अगले दिन नर्क चतुर्दशी फिर दिवाली मनाई जाती है. दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है. इस दौरान घर को सजाया-संवारा जाता है. दिवाली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस से होती है. इस दिन बर्तन और आभूषण खरीदने की परंपरा है साथ ही इस दिन धन के देवता कुबेर, आयुर्वेद की जन्मदाता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
दूसरे दिन नर्क चतुर्दशी होती है जिसको छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन घर के साथ खुद के तन की सुंदरता भी निखारी जाती है. इसी वजह से इस दिन को रूप चौदस भी कहा जाता है।
तीसरा दिन इस त्योहार का तीसरा और मुख्य दिन होता है दिवाली का, जिसके नाम से ये पांच दिवसीय त्योहार जाना जाता है. माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी भी कार्तिक माह की अमावस्या को प्रकट हुई थीं. इसी वजह से दिवाली के दिन मां लक्ष्मी का स्वागत और उनका भव्य पूजन-अर्चन किया जाता है. घरों को सजाया जाता है और दीप जलाये जाते हैं. इसके साथ ही ये भी मान्यता है कि रावण का वध करके चौदह वर्षों के वनवास के बाद इस दिन भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे. तब उनका स्वागत घर-घर दीप जला कर किया गया था. तब से ही दिवाली के दिन दीप जलाने की परंपरा है।
चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. इस दिन को अन्नकूट, पड़वा और प्रतिपदा भी कहा जाता है. इस दिन घर के आंगन, छत या बालकनी में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं. इसके बाद 51 सब्ज़ियों को मिलाकर अन्नकूट बनाकर गोवर्धन बाबा को भोग लगाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
पांचवां दिन भाई दूज के तौर पर मनाया जाता है जिसके साथ ही दिवाली की त्योहार का समापन भी होता है. इस दिन को यम द्वितीया भी कहते हैं. इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाते हैं और बहन के हाथों से माथे पर तिलक करवाते हैं. साथ ही इस दिन बहन के हाथ का बना खाना खाने की परंपरा भी है. कहा जाता है कि इससे भाई की उम्र लम्बी होती है।